'मरने का ख्याल और वजूद पर सवाल', डिप्रेशन से जूझने पर खुलकर बोले रॉबिन उथप्पा; ये था जिंदगी का सबसे भयावह वक्त
4 months ago | 34 Views
पूर्व भारतीय क्रिकेटर रॉबिन उथप्पा डिप्रेशन से जूझ चुके हैं। उन्हें साल 2011 में मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं ने तोड़कर रख दिया था। वह तब खुद को बेकार समझने लगे थे और अपने वजूद पर ही सवाल उठा रहे थे। हालांकि, उथप्पा ने हिम्मत से काम लिया और भयावह वक्त से उबरने में कामयाब रहे। उथप्पा ने अब डिप्रेशन से जूझने को लेकर खुलकर अपनी बात रखी है। उथप्पा ने उन क्रिकेटर्स का भी जिक्र किया, जिन्होंने डिप्रेशन और अन्य परेशानियों से जूझने के बाद आत्महत्या की। 2007 टी20 विश्व कप विजेता टीम का हिस्सा रहे उथप्पा ने भारत के लिए 46 वनडे और 13 टी20 खेले।
'अंधेरे में उम्मीद खोजें'
उथप्पा ने मंगलवार को सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म 'एक्स' पर एक वीडियो शेयर किया। उन्होंने कैप्शन में लिखा, ''मैंने क्रिकेट के मैदान पर कई बैटल का सामना किया लेकिन उनमें से कोई भी डिप्रेशन से जूझने जितनी चुनौतीपूर्ण नहीं थी। मैं मानसिक स्वास्थ्य के बारे में चुप्पी तोड़ रहा हूं, क्योंकि मुझे पता है कि मैं अकेला नहीं हूं। अपनी भलाई को प्राथमिकता दें, मदद लें और अंधेरे में उम्मीद खोजें। मैं ट्रू लर्निंग के इस एपिसोड में अपनी कहानी साझा कर रहा हूं। आइए हम सब मिलकर मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी भ्रांतियों को दूर करें।''
'यह खूबसूरत सफर नहीं'
वहीं, पूर्व क्रिकेटर ने वीडियो में कहा, ''हम डिप्रेशन और आत्महत्या के बारे में बात करेंगे। हमने हाल ही में इंग्लैंड के पूर्व बल्लेबाज ग्राहम थोरपे और भारत के डेविड जॉनसन के बारे में सुना। वीबी चंद्रशेखर सर जो चेन्नई सुपर किंग्स (सीएसके) की नींव थे। मैं भी उस दौर से गुजरा हूं। यह एक खूबसूरत सफर नहीं है। यह तोड़ देने वाला सफर है। आपको लगता है कि आप उन लोगों के लिए बोझ हैं, जिन्हें आप प्यार करते हैं। यह चुनौतीपूर्ण है। आपको लगता है कि आप बेकार हैं।''
'इसमें कोई दिक्कत नहीं'
उथप्पा ने आगे कहा, ''मैं 2011 में बतौर इंसान जो बना, उससे बहुत शर्मिंदा था। अगर आपको नहीं पता कि आगे क्या करना है तो इसमें कोई दिक्कत नहीं। कभी-कभी उस एक दिन के लिए जीना ही आपका अगला कदम उठाना होता है। अक्सर आपको सुरंग के अंत में प्रकाश की आवश्यकता नहीं होती है। आपको केवल अगले चरण तक प्रकाश की आवश्यकता होती है। उन्होंने कहा, "हमने कई लोगों के बारे में सुना है, जिन्होंने डिप्रेशन के कारण अपनी जान ले ली। मैं भी उस ख्याल से गुजर चुका हूं। यह भारी है, ऐसा ही महसूस होता है। जब मैं क्लिनिकल डिप्रेशन से जूझ रहा था तो मुझे अक्सर ऐसा लगता था कि मैं बोझ हूं। मैं जवाब खोज रहा था।"
ये भी पढ़ें: पाकिस्तान पेसर्स से निपटने के लिए बांग्लादेश के पास है ये हथियार, कप्तान शंटो ने बताया नाम
#