क्रिकेट कोच गौतम गंभीर को झटका, धोखाधड़ी केस में बरी किए जाने का आदेश खारिज, होगी जांच
20 hours ago | 5 Views
दिल्ली की एक अदालत ने एक नए सिरे से जांच का निर्देश देते हुए पूर्व क्रिकेटर और भारतीय क्रिकेट टीम के मौजूदा मुख्य कोच गौतम गंभीर और अन्य को फ्लैट खरीदारों के साथ कथित धोखाधड़ी के मामले में बरी किए जाने के आदेश को खारिज कर दिया है। विशेष न्यायाधीश विशाल गोगने की अदालत ने मजिस्ट्रेट कोर्ट के आदेश को खारिज करते हुए आरोपों की नए सिरे से जांच के आदेश जारी किए।
विशेष न्यायाधीश विशाल गोगने की अदालत ने धोखाधड़ी के उक्त मामले में मजिस्ट्रेटियल कोर्ट कोर्ट के गौतम गंभीर एवं अन्य को आरोपमुक्त करने के आदेश को खारिज कर दिया। इसके साथ ही अदालत ने कहा कि इस आदेश में दिमाग का उचित इस्तेमाल नहीं होने की बात सामने आती है। उक्त आरोप गौतम गंभीर की भूमिका की आगे की जांच के लायक हैं।
विशेष न्यायाधीश विशाल गोगने ने 29 अक्टूबर के अपने आदेश में लिखा- इन आरोपों के कारण गौतम गंभीर की भूमिका की और भी जांच की जानी चाहिए। कथित धोखाधड़ी का मामला रियल एस्टेट फर्म रुद्र बिल्डवेल रियल्टी प्राइवेट लिमिटेड, एच आर इंफ्रासिटी प्राइवेट लिमिटेड, यू एम आर्किटेक्चर एंड कॉन्ट्रैक्टर्स लिमिटेड और गंभीर के खिलाफ दर्ज किया गया था। गंभीर इन कंपनियों के ज्वाइंट वेंचर के निदेशक और ब्रांड एंबेसडर थे।
विशेष न्यायाधीश विशाल गोगने ने कहा कि गंभीर इकलौते आरोपी हैं जिनका ब्रांड एंबेसेडर होने के नाते निवेशकों के साथ सीधा इंटरफेस (जुड़ाव) था। फिर भी उन्हें बरी कर दिया गया है, लेकिन मजिस्ट्रेट अदालत के आदेश में उनके रुद्र बिल्डवैल रियलिटी प्राइवेट लिमिटेड को छह करोड़ रुपये देने और कंपनी से 4.85 करोड़ रुपये लेने का कोई जिक्र नहीं किया गया है।
न्यायाधीश ने यह भी कहा कि आरोपपत्र में यह साफ नहीं किया गया है कि क्या रुद्र बिल्डवैल रियलिटी प्राइवेट लिमिटेड द्वारा उन्हें वापस अदा की गई रकम में कोई सांठगांठ थी या संबंधित परियोजना में निवेशकों से प्राप्त धन से प्राप्त की गई थी। चूंकि आरोपों का मूल धोखाधड़ी के अपराध से संबंधित है, इसलिए यह जरूरी था कि आरोपपत्र और आदेश में यह होना चाहिए कि क्या धोखाधड़ी की राशि का कोई हिस्सा गंभीर के हाथ आया था।
अदालत ने पाया कि 'गंभीर ने ब्रांड एंबेसडर के रूप में अपनी भूमिका से परे कंपनी के साथ वित्तीय लेनदेन किया था और वह 29 जून, 2011 और 1 अक्टूबर, 2013 के बीच एक अतिरिक्त निदेशक थे। इस तरह, जब परियोजना का विज्ञापन किया गया था तब वह एक पदाधिकारी थे।’ इस मामले में अभियोजन पक्ष ने आरोप लगाया है कि शिकायतकर्ताओं ने परियोजनाओं में फ्लैट बुक किए और विज्ञापनों और ब्रोशर से लालच में आकर 6 लाख रुपये से 16 लाख रुपये के बीच भुगतान किया।
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