Guru Purnima: सचिन तेंदुलकर ने अपने गुरु आचरेकर को किया याद, विराट के कोच ने बताई ये दिलचस्प स्टोरी

Guru Purnima: सचिन तेंदुलकर ने अपने गुरु आचरेकर को किया याद, विराट के कोच ने बताई ये दिलचस्प स्टोरी

5 months ago | 38 Views

2024 की गुरु पूर्णिमा आज यानी रविवार 21 जुलाई को है। गुरु पूर्णिमा पर हर कोई अपने गुरु को याद कर रहा है। ऐसे में इस अवसर पर क्रिकेट के भगवान कहे जाने वाले सचिन तेंदुलकर ने भी अपने गुरु रमाकांत आचरेकर को याद किया है, जबकि विराट कोहली के बचपन के कोच राजकुमार शर्मा वह किस्सा शेयर किया है, जब विराट पहली बार उनकी एकेडमी में पहुंचे थे। सचिन ने कहा है कि गुरु पूर्णिमा वह दिन है जब हम अपने गुरुओं को हमारे जीवन में बदलाव लाने के लिए उनकी गहरी प्रतिबद्धता के लिए धन्यवाद देते हैं। उन्होंने पेरिस ओलंपिक के खिलाड़ियों और कोचों को भी शुभकामनाएं दीं।  

सचिन तेंदुलकर ने एक्स पर पोस्ट करते हुए लिखा, "गुरु पूर्णिमा वह दिन है जब हम अपने गुरुओं को हमारे जीवन में बदलाव लाने के लिए उनकी गहरी प्रतिबद्धता के लिए धन्यवाद देते हैं। आज, मैं आचरेकर सर को याद करता हूं और उनके द्वारा मेरे जीवन में किए गए बदलाव के लिए उन्हें धन्यवाद देता हूं। आचरेकर सर क्रिकेट में अपने योगदान के लिए द्रोणाचार्य पुरस्कार विजेता थे। खेल और अपने खिलाड़ियों के प्रति उनका समर्पण बेजोड़ था। उनकी तरह ही, कई कोच भारत में खेलों की बेहतरी के लिए अथक प्रयास कर रहे हैं। ओलंपिक के करीब आने के साथ, मैं ओलंपिक खेलों के सभी कोचों को उनके समर्पण और प्रेरणा के लिए धन्यवाद देना चाहता हूं। राष्ट्र आपके योगदान के लिए बहुत आभारी है। पेरिस ओलंपिक में सभी कोचों और उनके खिलाड़ियों को मेरी शुभकामनाएं।"

वहीं, विराट कोहली को लेकर उनके बचपन के कोच राजकुमार शर्मा ने एक बार कहा था, "वह पहले दिन अपने पिता और बड़े भाई के साथ आए थे। वह हमारी एकेडमी का भी पहला दिन था। हमने वेस्ट दिल्ली एकेडमी बनाई थी। मुझे दिन भी याद है। वह 30 मई 1998 का दिन था। वह ऐसे बच्चे थे, जो सब कुछ करना चाहते थे। वह बल्लेबाजी करना चाहते थे, वह गेंदबाजी करना चाहते थे और वह फील्डिंग भी पसंद करते थे। उस उम्र में भी उनके अंदर वह पावर थी, जो आमतौर पर उतनी एज के बच्चों में नहीं होती है।"

राजकुमार शर्मा ने आगे बताया, "वह बाउंड्री लाइन से भी गेंद को बहुत तेज फेंकते थे। वह बाकियों से अलग थे, लेकिन वह बल्लेबाजी के बहुत शौकीन थे। जब भी वह नेट्स में जाते थे, लौटने का नाम नहीं लेते थे। मैं कहता था कि विराट ये तुम्हारा आखिरी राउंड है तो वह कहते थे कि नहीं सर दो और राउंड में बल्लेबाजी करूंगा। वह बहुत जल्दी सीखते थे।" 

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