मनोज बाजपेयी ने कॉलेज के दिनों तक नहीं खरीदे जूते, बोले- पापा की चप्पलें पहनकर घूमता रहता था

मनोज बाजपेयी ने कॉलेज के दिनों तक नहीं खरीदे जूते, बोले- पापा की चप्पलें पहनकर घूमता रहता था

1 month ago | 14 Views

बॉलीवुड स्टार मनोज बाजपेयी का स्ट्रगल उनका हर फैन जानता है। मनोज इन दिनों अपनी फिल्म 'भैयाजी' के लिए सुर्खियों में बने हुए हैं। पिछले हफ्ते सिनेमाघरों में रिलीज हुई यह मनोज बाजपेयी की 100वीं फिल्म है। एक्टर ने एक इंटरव्यू में फिल्म के बारे में बातचीत करने के दौरान अपने शुरुआती दिनों के बारे में भी बात की। मनोज बाजपेयी ने बताया कि बिहार में उनका बचपन कैसा बीता था और वो वक्त कैसा था जब उनके पास एक जोड़ी जूते खरीदने के लिए भी पैसे नहीं हुआ करते थे। तब मनोज अपने पिता की चप्पलें पहनकर ही आया-जाया करते थे।

कॉलेज के दिनों तक नहीं खरीदे खुद के जूते

पद्मश्री मनोज बाजपेयी ने मेशैबल के साथ बातचीत में बताया, "मैं अपने सभी भाइयों में सबसे बड़ा हूं। पापा की चप्पलें मुझे फिट आया करती थीं। वो बहुत परेशान हो जाते थे कि मैं उनकी चप्पलें पहन लेता हूं।" एक्टर ने बताया कि बिहार में अपनी परवरिश के दौरान उन्होंने कभी भी खुद की चप्पलें नहीं खरीदीं। उन्होंने कहा, "आपको हैरानी होगी कि अपने कॉलेज के दिनों तक मैंने कभी जूते नहीं पहने। छोटे-छोटे कस्बों में आपको जूतों की जरूरत नहीं होती है। मैं अच्छे कपड़े पहनता था, मुझे अच्छे कपड़े पहनना पसंद था।"

सिर्फ तीन जोड़ी कपड़े थे जिन्हें धोकर पहनता

मनोज बाजपेयी ने बताया कि कैसे उनके पास तीन जोड़ी कपड़े हुआ करते थे, लेकिन वो हमेशा उन्हें धोकर अच्छी तरह आयन करके रखते थे। मुझे वो कपड़े पहनना पसंद था जो उन दिनों फैशन में हुआ करते थे, लेकिन जूतों से मेरा कोई खास लगाव नहीं रहा। मुझे चप्पलें पहनना पसंद था। अभी भी जूते पहनना उतना नहीं जमता है। मैंने जूते पहनना तब से शुरू किया जब मैंने थिएटर शुरू किया। बता दें कि मनोज बाजपेयी अपनी अदाकारी के लिए जाने जाते हैं और पिछले कुछ वक्त में उन्होंने बड़े पर्दे के साथ-साथ ओटीटी पर भी कमाल का काम किया है।

दिल्ली के जनपथ से खरीदते थे रिजेक्टेड कपड़े

मनोज बाजपेयी ने बताया कि वो थिएटर के शुरुआती दिनों में एक्सपोर्ट के लिए जाने वाले रिजेक्टेड कपड़े पहना करते थे। यह उन दिनों की बात है जब मनोज 1000 से 15000 रुपये तक कमा लिया करते थे। उन्होंने बताया कि वो दिल्ली में जनपथ से कपड़े खरीद लिया करते थे जहां उन्हें रिजेक्टेड कपड़े मिल जाते थे। इसी तरह का एक बाजार सरोजनी में लगता था जहां उन्हें एक्सपोर्ट के लिए जाने वाला रिजेक्ट माल मिल जाता था। उन्होंने बताया कि वहां से उन्हें सस्ते कपड़े मिल जाते थे। जब उनकी हजार पंद्रह सौ की कमाई हो जाती थी। तो वह जाकर कपड़े खरीद लेते थे।

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